भारत और अमेरिका के रिश्तों का सबसे मजबूत स्तंभ है रक्षा साझेदारी। पिछले दो दशकों में हुई हथियारों की खरीद, तकनीकी हस्तांतरण और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते तालमेल से यह बात साबित होती है।
ट्रंप फैक्टर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में एक के बाद एक कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनसे आपसी संबंधों में प्रोग्रेस और परसेप्शन के बीच दूरी कम होने के बजाय बढ़ गई। हालांकि आपसी रिश्तों में आशा जगाने वाली प्रगति जारी थी। फिर भी ट्रंप कीखास नाटकीयता के कारण सोच बनी कि दोनों देशों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है।
समझौते की अहमियत
नए डिफेंस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट को बेहद अहम माना जा रहा है। इसकी कम से कम चार बड़ी वजहें हैं। पहली, यह समझौता ऐसे समय हुआ है जब ट्रंप ने भारत पर सबसे ज्यादा टैरिफ लाद रखे हैं। दूसरी बात यह है कि भारत-अमेरिका रिश्तों में रक्षा और व्यापार का चोली-दामन जैसा साथ रहा है। ऐसे में यह दीर्घकालिक रक्षा समझौता काफी हद तक आश्वस्त कर देता है कि व्यापार समझौते को लेकर चल रही बातचीत भी देर-सबेर पटरी पर आ ही जाएगी।
सामरिक नजरिया
भारत-अमेरिका रक्षा और सुरक्षा रिश्तों के लिहाज से 2025 फ्रेमवर्क से एक नया रोडमैप तैयार होगा। वह भी ऐसे वक्त में, जब तकनीक ही नहीं युद्ध का स्वरूप भी तेजी से बदल रहा है। इस समझौते को खास तौर पर क्षेत्रीय स्थिरता, प्रतिरोध, तकनीकी सहयोग और सूचनाओं के लेन-देन के लिहाज से खास माना जा रहा है। डिफेंस क्षेत्र में फायदों के अलावा यह समझौता हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता को लेकर दीर्घकालिक सामरिक नजरिया अपनाता है। इसमें मुक्त, खुले और नियम आधारित हिंद-प्रशांत पर जोर दिया गया है।